।। जागर शक्तीचा ।। जागर नवदुर्गांचा - देवी शैलपुत्री

।। जागर शक्तीचा ।। जागर नवदुर्गांचा

देवी शैलपुत्री


देवी सती च्या देहत्यागानंतर देवी पार्वतीने पर्वतराज हिमालयाच्या पोटी जन्म घेतला संस्कृतमध्ये शैल म्हणजे पर्वत म्हणूनच देवीच्या या स्वरूपाला शैलपुत्री म्हणजेच पर्वत कन्या असे म्हणतात. 

पूजन:

शैलपुत्री चे पूजन नवरात्रीच्या पहिल्याच दिवशी केले जाते शैलपुत्रीचा आवडता रंग पांढरा आहे. 

आधीपत्त्यातील ग्रह:

सर्व सुखांचा दाता चंद्र हा ग्रह देवी शैलपुत्री च्या अधिपत्याखाली येतो.या ग्रहामुळे होणाऱ्या दुष्परिणामांतून बाहेर पडण्यासाठी आदिशक्तीच्या शैलपुत्री या रूपाची उपासना केली जाते. 


देवीचे वर्णन:

शैलपुत्री देवीचे वाहन नंदी असून तिला वृषारूढा असेही म्हणले जाते.शैलपुत्री देवीने उजव्या हातात त्रिशूळ तर डाव्या हातात कमळ धारण केलेले असते.शैलपुत्रीला हेमवती आणि पार्वती असेही म्हणले जाते देवीच्या रूपाचे महत्त्व लक्षात घेऊन नवरात्रीच्या पहिल्या दिवशी तिचे पूजन केले जाते शैलपुत्री देवीच्या पूर्वजन्मातील सतीच्या पूर्वसंचितामुळेच  तिचे महादेवाची लग्न झाले देवी शैलपुत्री ला चमेलीची फुले  प्रिय आहेत. 


मंत्र :

 ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥


प्रार्थना : 

  वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

              वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥


स्तुती :

या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


देवी ध्यानम :

  वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

पूणेन्दु निभाम् गौरी मूलाधार स्थिताम् प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥

प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।

कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥


स्तोत्र:

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।

सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं।

मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥


देवी शैलपुत्री कवच :

                           ॐकारः में शिरः पातु मूलाधार निवासिनी।

                                हींकारः पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥

                                  श्रींकार पातु वदने लावण्या महेश्वरी।

                               हुंकार पातु हृदयम् तारिणी शक्ति स्वघृत।

                               फट्कार पातु सर्वाङ्गे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥


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