।। जागर शक्तीचा ।। जागर नवदुर्गांचा ।।

 ।। जागर शक्तीचा ।। जागर नवदुर्गांचा ।।

कात्यायनी


महिषासुराचा नाश करण्यासाठी देवी पार्वतीने देवी कात्यायनीचा अवतार घेतला . कात्यायनी हे देवी पार्वतीचे अत्यंत हिंसक रूप मानले जाते . कात्यायनीला  युद्धाची देवी म्हणले जाते. 


पूजन : देवी कात्यायनीचे पूजन नवरात्रीच्या सहाव्या दिवशी केले जाते. 

अधिपत्यातील ग्रह: बृहस्पती ग्रहावर देवी कात्यायनीचे अधिपत्य मानले जाते. 

देवीचे वर्णन : भव्य सिंहावर आरूढ झालेली कात्यायनी देवीला चार हात असून डाव्या बाजूच्या  कमळ आणि तलवार तर उजव्या बाजूचे हात अभय आणि वराड मुद्रेत असतात. धार्मिक ग्रंथानुसार ऋषी कात्याच्या घरी जन्म घेतल्याने देवीच्या ह्या रुपाला कात्यायनी असेही म्हणतात. या देवीला लाल रंगाची फुले विशेषत्वाने गुलाब प्रिय आहेत. 

मंत्र : ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

प्रार्थना : चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

स्तुती : या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


देवी ध्यानम : 

 वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥

स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥

पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।

मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।

कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥

स्तोत्र : 

कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।

स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥

पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।

सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥

परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।

परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥

विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।

विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥

कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते।

कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥

कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना।

कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥

कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी।

कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥

देवी कवच :

कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।

ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥

कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥

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